नज़्मों में सूरज का मान चाँद से ज़्यादा नहीं, तो काम भी नहीं है। नज़्मों में सूरज का मान चाँद से ज़्यादा नहीं, तो काम भी नहीं है।
ये एक ही ज़िंदगी में कई ज़िंदगियाँ जी लेती है। ये एक ही ज़िंदगी में कई ज़िंदगियाँ जी लेती है।
पर क्यों न कोई ज़माने में सूरज सा मिलता है पर क्यों न कोई ज़माने में सूरज सा मिलता है
मिलता हूँ ढलती शाम होने पर आखिर अँधेरे में आकर मुझे ही तो फिर दमकना है। मिलता हूँ ढलती शाम होने पर आखिर अँधेरे में आकर मुझे ही तो फिर दमकना है।
चाहत बंद है ग़म से, हर शाम कह रही हम से परछाइयाँ गहरी हो रही है चाहत बंद है ग़म से, हर शाम कह रही हम से परछाइयाँ गहरी हो रही है
अपनो से बात करके किस को अच्छा नहीं लगता बहुत से सवालो के जवाब मिल गए और ऐसे भी अपनो से बात करके किस को अच्छा नहीं लगता बहुत से सवालो के जवाब मिल गए और ऐस...